5 घंटे पहले
बचपन से हम सभी इतिहास में यही पढ़ते हुए बड़े हुए हैं कि भारत पर एलेक्जैंडर ने हमला किया, उसके बाद हूण, शक, पहलव और कुषाण आए फिर शुरू हुआ मुस्लिम राजाओं का युग, और अंत में यूरोपीय शक्तियों का युग।
कभी आपने यह सुना है कि भारत में ऐसा भी कोई राजा हुआ है जिसने विदेशों तक अपना शासन स्थापित किया हो? जी हां, भारत के इतिहास में एक ऐसा योद्धा भी है, जिन्हें ‘भारत का सिकंदर’ कहा जा सकता है।
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एक महान चोल
उनका नाम है, चोल वंश के दूसरे शासक राजेंद्र चोल।
उनके शासनकाल में चोल साम्राज्य उत्तर में गंगा नदी के तट से दक्षिण में मालदीव तक और दक्षिण-पूर्व में मलय प्रायद्वीप, दक्षिणी थाईलैंड, सुमात्रा और जावा तक फैला था। दक्षिण-पूर्वी देशों जैसे कम्बोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया आदि में भारतीय संस्कृति का प्रभाव आज भी देखा जा सकता है। इन देशों में कठपुतलियों से रामायण सुनाने की परंपरा हो, नाग और कुबेर की मूर्तियां हों या इंडोनेशिया की एयरलाइंस के नाम गरुड़ एयरलाइंस रखने जैसे कदमों में भारतीय संस्कृति की झलक देखी जा सकती है।
कौन थे राजेंद्र चोल
तमिलनाडु के थंजावुर में बृहदिश्वर मंदिर की दीवार पर बना ये चित्र राजेंद्र चोल-प्रथम के पिता राजराजा-प्रथम का है। उनका असली नाम अरुणमोली वर्मन था।
राजेंद्र चोल प्रथम का जन्म 11वीं शताब्दी ईसवीं में थंजावुर में राजराजेश्वर मंदिर बनाने के लिए प्रसिद्ध राजराजा प्रथम के यहां हुआ था। उनकी माता का नाम थिरिपुवना महादेवी था और वे कोडंबलूर की राजकुमारी थी। राजेंद्र चोल के पिता राजराजा-प्रथम के जीवन पर ही मणिरत्नम ने हाल में फिल्म ‘पोन्नियन सेल्वन’ बनाई है।
अपने पिता की मृत्यु के बाद जब राजेंद्र प्रथम सिंहासन पर बैठे तो उन्हें विरासत में एक विशाल साम्राज्य मिला था जिसे उन्होंने अपने 33 वर्ष के शासनकाल में और बढ़ाया।
राजेंद्र चोल के जीवन से 5 बड़े सबक
1) कर्म को समर्पित जीवन
राजेंद्र चोल का सम्पूर्ण जीवन सैन्य अभियानों और युद्ध करने में बीता जिसमें उन्हें सफलता भी हासिल हुई। उन्होंने पांड्यों, केरल और श्रीलंका पर पूर्ण विजय हासिल की। गंगा नदी तक विजय के पश्चात उन्होंने ‘गंगई कोंड’ की उपाधि धारण की, जबकि ‘कडारकोन्ड’ उपाधि उनके दक्षिण-पूर्वी एशिया के अभियानों का प्रतीक है।
सबक: विरासत में भले ही काफी कुछ मिले, हमें उसे आगे और बढ़ाते रहने का प्रयास करना चाहिए।

कर्नाटक के कोलार में कोलारम्मा मंदिर में रखी इस कलाकृति में बीच में राजेंद्र चोल-प्रथम को युद्ध के दौरान दिखाया गया है। इतिहास में उनका नाम महान विजेता के रूप में दर्ज है।
2) उदार एवं कुशल प्रशासक
युद्ध विजेता होने के साथ वे कुशल प्रशासक भी थे। ये सामान्य रूप से होता नहीं है!
वे उदार थे किन्तु दंड के महत्व को समझते थे। सही विदेश नीति का परिचय देते हुए उन्होंने सीमावर्ती राज्यों के प्रति कठोर रुख अपनाया। उन्होंने शासन-संगठन, सैन्य-व्यवस्था, आर्थिक सुधारों की ओर भी ध्यान दिया। उनकी सेना में महिलाएं भी सेनापति के रूप में नियुक्त की गईं थीं। उन्होंने अपने राज्य में सिंचाई की व्यवस्था के लिए झीलों का निर्माण करवाया।
सबक: किसी भी तरह की संस्था चलाने, फिर वह चाहे परिवार हो, कम्पनी हो या राज्य, कुशल प्रशासक होना आवश्यक है। और इसमें फुल कमिटमेंट चाहिए।
3) दूरदृष्टा
भारत में यूरोपीय और ब्रिटिश शासन की विजय का एक बड़ा कारण उनकी नौसेनिक ताकत थी। लेकिन नौसेना की ताकत का एहसास राजेंद्र चोल प्रथम को लगभग 700 वर्ष पहले था।
राजेंद्र चोल प्रथम के पास शायद उस समय के विश्व की सबसे ताकतवर नौसेना थी जिसका निर्माण उन्होंने ही करवाया था। श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया की विजय में इस मजबूत नौसेना का बहुत बड़ा योगदान था। राजेन्द्र प्रथम के समय चोलों की नौसेना इतनी ताकतवर थी कि उसने पूरे बंगाल की खाड़ी पर अपना दबदबा स्थापित कर लिया था। बंगाल की खाड़ी को ‘चोल झील’ कहा जाता था।
सबक: अपने समय से आगे जाकर, आप दुनिया में नंबर-1 बन सकते हैं।
4) शिक्षा और कला के कद्रदान
त्रिलोचन शिवाचार्य के ग्रन्थ ‘सिद्धांत सारावली’ के अनुसार राजेंद्र चोल स्वयं एक कवि थे और उन्होंने कई शिव स्तुतियों और भजनों की रचना की। उन्होंने शिक्षा के लिए विद्यालय की स्थापना की जहां वेद, व्याकरण और न्याय आदि का पठन-पाठन होता था, और इसमें 340 छात्र और 14 अध्यापक थे।
सबक: एक शिक्षित राजा हमेशा एक बेहतर राजा होता है।

यह राजेंद्र चोल-प्रथम की आधिकारिक मोहर थी। उनका प्रभाव इतना था कि इस मोहर से जारी आदेश दक्षिण-पूर्वी एशिया के कई देशों में चलते थे।
5) सफल व्यापार रणनीति
उन्होंने साम्राज्य की सफलता में अर्थ और व्यापार के महत्व को समझा तथा व्यापार को बढ़ाने का निश्चय किया।
उस समय भारत का अधिकतर व्यापर दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों, चीन और जापान से होता था। बहुमूल्य सामग्री लेकर जहाज बंगाल की खाड़ी से होते हुए हिन्द महासागर को पारकर, जावा, लाओस, वियतनाम, कम्बोडिया के बंदरगाहों पर सामान उतारते हुए चीन और जापान की ओर बढ़ जाते थे।
राजेंद्र चोल प्रथम द्वारा अपनी नौसेना को मजबूत करने का एक बड़ा कारण इन जहाजों की सुरक्षा करना भी था। उनके पास अरब, यूनान, मिस्र और यहां तक कि रोम तक विस्तृत व्यापार नेटवर्क था। फिर, यह उनकी नौसेना के कारण है।
सबक: अर्थ और व्यापार जीवन का आधार है। इसके बगैर प्रगति की बात करना बेमानी है।
उम्मीद करता हूं भारत के वीर सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम का मेरे द्वारा किया गया विश्लेषण आपके लिए उपयोगी साबित होगा।
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